9 जिलों की 54 सीटों पर हुई जंग में अधिकतर पर भाजपा और सपा के बीच ही सीधी टक्कर रही

9 जिलों की 54 सीटों पर हुई जंग में अधिकतर पर भाजपा और सपा के बीच ही सीधी टक्कर रही

वाराणसी। चुनावी रण के अंतिम द्वार पर पूर्वांचल के 9 जिलों की 54 सीटों पर हुई जंग में अधिकतर पर भाजपा और सपा के बीच ही सीधी टक्कर रही। जबकि कई सीटों पर बसपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों ने भी जोर दिखाया है और प्रतिद्वंद्वी के सामने कड़ी चुनौती देते हुए दिखे। कुछ सीटों पर बसपा और कांग्रेस के प्रत्याशी की मजबूत मौजूदगी के चलते त्रिकोणीय लड़ाई भी हुई है। अंतिम चरण में प्रदेश सरकार में मंत्री रहे नीलकंठ तिवारी, अनिल राजभर, रवीेंद्र जायसवाल, रमाशंकर पटेल, संगीता बलवंत, गिरीशचंद्र यादव के अलावा भाजपा से सपा में आए दारा सिंह चौहान, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर और उनके बेटे अरविंद राजभर को जहां, कड़े संघर्ष से गुजरना पड़ा है, वहीं मतदाताओं की कसौटी और खामोशी ने जरूर मैदान में डटे योद्धाओं के माथे पर बल डाल रखा है। सातवें चरण में भी कहीं जाति का मुद्दा चला तों कहीं धर्म प्रभावी रहा।

गंगा की लहरों के साथ उफान मार रही पुरबिया पट्टी की सियासत में सोमवार को माहौल काफी गर्म रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सरकार के काम और अपने सांसद के प्रति स्नेह को ध्यान में रखकर मतदाता बूथों पर पहुंचे थे। भदोही की ज्ञानपुर सीट पर प्रगतिशील समाज पार्टी के विधायक विजय मिश्र प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों से सीधे मुकाबला करते दिखेे। उधर, जौनपुर की मल्हनी में पूर्व सांसद धनंजय सिंह रेस मंे दमदारी से डटे हैं। चंदौली की सैय्यदराजा में भाजपा के सुशील सिंह और सपा के मनोज सिंह डब्ल्यू के बीच सीधी टक्कर दिखी। मिर्जापुर नगर सीट पर भाजपा के रत्नाकर मिश्र और सपा के कैलाश सोनकर के बीच कड़ा मुकाबला रहा। मऊ में दारा सिंह चौहान, गाजीपुर की जहूराबाद में सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर, मऊ सदर पर माफिया मुख्तार अंसारी का बेटा अब्बास अंसारी, आजमगढ़ की फूलपुर पवई सीट पर पूर्व सांसद रमाकांत यादव भी जनता दरबार से उम्मीद लगाए बैठे हैं। नौ जिलों की ज्यादातर सीटों पर मुसलमान एकजुट होकर सपा के पक्ष में दिखाई दिए। गंगा-गोमती और तमसा किनारे वाले इन जिलों में केंद्र और राज्य सरकार के विकास कार्य, काशी विश्वनाथ मंदिर का भव्य स्वरूप, विंध्याचल धाम और राम मंदिर के साथ ही कानून-व्यवस्था, बेरोजगारी के मुद्दे के साथ ही जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमते नजर आए।