पार्ट – 2:  दस साल का वनवास…

पार्ट – 2:  दस साल का वनवास…

फीचर्स डेस्क। दूसरे दिन वो मुझे मेरी क्लास में मिल गया और मुझे देखते ही चौंक कर बोल पड़ा, "आप.. यहां!"

"जी.. मैं भी इसी काॅलेज में, बीटेक फर्स्ट ईयर की छात्रा हूं," मैंने हल्की मुस्कान बिखेरते हुए कहा।

"अरे आपने तो कल बताया ही नहीं कि आप भी इसी काॅलेज में पढ़ती है?"

" जी बातों ही बातों में आपको बताना भूल ही गई थी। अब मैं, कैसे बताती उसे कि मैं तो तुम्हारी मदहोश करने वाली आंखों के समुद्र की गहराईयों में डुबकी लगा रही थी। तुमसे वैसे ही बातें कर रही थी, जैसे प्रेम में डूबी हुई प्रेमिका अपने प्रेमी से शरमा - शरमा कर बातें करती है। उसे पता है कि अगर मन भर प्रियतम की आंखों में देख लिया तो फिर वो वापस न जा सकेगी।," मैंने मन ही मन बुदबुदाया।

" ये तो बहुत ही अच्छी बात है, अब हम क्लासमेट बन गए। आइए ना यहां बैठते हैं, क्लास शुरू होने वाली है।", उसने बड़ी सहजता से कहा।

"जी मेरी सहेली मेरा इंतजार कर रही है, फिर कभी।" मैं सकुचाते हुए इतना कहकर दूसरे बेंच पर सुमन के साथ आकर बैठ गई।

उसके साथ बैठने के एहसास से ही मेरे शरीर में सिहरन सी उठ गई।

क्लास खत्म हुआ। मैं और सुमन कैंटीन में बैठकर अपना फेवरेट समोसा खाने लगे, तभी नीलेश सैंडविच लेकर हमारे टेबल पर बैठने के लिए मुझसे परमिशन मांगते हुए बोला, "अगर आप बुरा ना माने तो मैं यहां बैठ सकता हूं?"

मैं, सुमन की तरफ देखकर उसकी सहमति का इंतजार करने लगी। इससे पहले ही सुमन तपाक से बोल पड़ी, जी हां... बैठिए।

नीलेश झट से कुर्सी खिसकाकर बैठ गया। मेरी ओर देखते हुए बोला, "देखिए ना हमारे बीच में इतनी सारी बातें हो गई लेकिन मैंने आपका नाम ही नहीं पूछा?" "मेरा नाम सपना है", मैंने सहज होते हुए बोला लेकिन अभी भी उसकी आंखों में नहीं देख पा रही थी।

"वाह! बहुत ही सुन्दर नाम है आपका।" देखिए यहां इस काॅलेज में, मैं नया हूं और अभी किसी से दोस्ती नहीं हुई है इसलिए कुछ दिनों तक आपको ही परेशान करूंगा।

"अरे .. आपकी रमन से बात हुई क्या? वह खाने बनाने के लिए तैयार हो गया?", मैंने बात को बदलते हुए कहा।

हां सपना जी, वो तैयार हो गया। कल रात से वो खाना बनाने लगा है और आज सुबह ब्रेकफास्ट भी बनाकर गया।

"कैसा लगा उसका बनाया खाना?," मैंने पूछा।

"जी ठीक ही बना रहा है, हमने जैसा उसको बताया, उस हिसाब से कल उसने बनाया। सबको अच्छा लगा, देखते है आगे भी इसी तरह से खाना बनाए तो अच्छा है", उसने मुस्कुराते हुए कहा।

लंच टाइम खत्म होते ही हम क्लास में पहुंच गए।

काॅलेज खत्म होते ही... मैं, सुमन के साथ निकल गई। काॅलेज मेरे अपार्टमेंट से कुछ ही दूरी पर था इसलिए मैं वाॅक करके ही चली जाती थी। ना ट्रैफिक की चिंता ना बस के धक्के खाने की झंझट। सुमन मेरी पक्की सहेली थी और वो भी पास ही रहती थी। फर्क सिर्फ इतना था कि वो काॅलेज के दक्षिण तरफ रहती थी और मैं उत्तर की तरफ। हमारा काॅलेज बीच में था। लिफ्ट में घुसते ही.. पीछे से आवाज आई, "सपना जी.. " देखा तो नीलेश था। "रूकिए," उसने कहा। मैंने लिफ्ट रोक कर रखा। मंजिल तो हमारी एक ही थी पांचवां माला। नीलेश झट से लिफ्ट में घुसकर पाँच नंबर का बटन दबा दिया। एक - दूसरे को सहज मुस्कान देते हुए, हम दोनों पांचवें माले पर पहुंच गए। लिफ्ट से बाहर निकलते ही वो बोल पड़ा, "चलिए फिर कल मिलते हैं।" मैंने भी हामी भर दी और अपने फ्लैट की ओर चल दी।

घर पहुंचकर कुछ देर सोफे पर पसर गई, " सपना बहुत थक गई क्या बेटा? जा.. जाकर मुँह - हाथ धो ले, सारी थकान उतर जाएगी।", मांँ ने सर पर हाथ फेरते हुए कहा। "हां... माँ, थोड़ी देर आराम करके.. फिर हाथ - पैर धोती हूं", मैंने लंबी सांस लेते हुए कहा।

"अच्छा चल तू थोड़ी देर आराम कर ले तबतक मैं तेरे लिए चाय बनाकर लाती हूं।" माँ रसोई में जाते हुए बोली।

सोफे पर बैठे - बैठे मैंने अपना व्हाट्सएप खोला और उसका प्रोफाइल पिक्चर देखते ही खुशी से उछल पड़ी। उसने मेरा नंबर जो सेव कर लिया था। इससे पहले उसकी प्रोफाइल पिक्चर मुझे नहीं दिख रही थी। मैं उसकी तस्वीर को जूम करके उसकी आंखें देखने लगी, कितनी कशिश थी, उन मदमयी आँखो में, जो एक बार में किसी को भी अपना दीवाना बना सकती थी। नीले शर्ट और ब्लैक जींस में वो बहुत ही फब रहा था। उसकी तस्वीर देखते ही ऐसा लगा मानो चंद्र ग्रहण समाप्त हो गया और अब चांद का रोज दीदार कर सकूँगी।

तभी माँ चाय लेकर आ गई, ये ले सपना। "हां.. हां" जल्दी से मोबाइल को बंद करते हुए मैंने बोला। चाय की एक घूँट भरते हुए मन प्रसन्न हो गया , " माँ, तुम्हारी हाथ की चाय का जवाब नहीं, कितनी भी थकान हो तुम्हारी बनाई चाय पीने से, थकान जाने कहां गायब हो जाती है," खुशी का इजहार करते हुए, मैंने कहा लेकिन आंतरिक खुशी तो कुछ और ही थी।

क्रमशः..........