प्रदूषण के कारण बढ़ रहे फेफड़े के मरीजों की लगातार संख्या 

 प्रदूषण के कारण बढ़ रहे फेफड़े के मरीजों की लगातार संख्या 

हेल्थ डेस्क। मेट्रो सिटी में पहले से ही प्रदूषण के कारण लोग फेफड़ों में प्रदूषण भरकर जी रहें हैं। लेकिन अब छोटे शहर भी इस से अछूते नहीं रहे। ऐसे में यूपी के कई शहरों में आपको श्वांस और फेफड़े से संबंधित खतरनाक बीमारियों का इलाज कराते मिल जाएगे। यही नहीं बल्कि स्थिति तो यह है कि प्रदूषण के कारण लोगों को सिर के बाल से लेकर पैरों के नाखून तक प्रभावित हुए हैं। अब वो बात दूर की हुई जब इस रोग के रोगी को कहा जाता था की तुम सिगरेट पीना छोड़ दो। अब प्रदूशित हवा में सांस लेने से छोटे आकार के प्रदूषण कण फेफड़ों से गुजर कर आसानी से शरीर की कोशिकाओं में घुस जाते हैं। इसके बाद रक्त प्रवाह के माध्यम से वे शरीर के सभी अंगों की कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं। ऐसे धूल कण जिनका आकार 10 माइक्रान से कम होता है, वो आसानी से श्वांस नली द्वारा फेंफड़ा के सुदूर हिस्सों में जमा हो जाते हैं। ऐसे धूल कण जिनका आकार 2.5 माइक्रान से कम होता है वो अत्यधिक खतरनाक होते हैं। आसानी से फेफड़े के सुदूर हिस्सों में जमा हो जाते हैं। जमा होने के पश्चात ये धूल कण और रासायनिक तत्व फेफड़े के उत्तकों से प्रतिक्रिया कर बोंकाइटिस, अस्थामा, सीओपीडी, फेफड़े के कैंसर जैसी बीमारी पैदा करते हैं। साथ ही नसों का लचीलापन समाप्त हो जाता है और धमनियों के अवरुद्ध होने का खतरा बना रहता है। इस कारण हृदयघाट, स्ट्रोक आदि का खतरा रहता है। गर्भस्त शिशु का विकास अवरुद्ध हो जाता है। बात करें दिल्ली की तो यहाँ प्रदूषक तत्व पीएम 2.5 में अचानक आई वृद्धि की वजह से बारीक कण सीधे फेफड़ों में घुस रहे हैं। श्वसन रोगियों की संख्या बेतहाशा बढ़ती जा रही है। शरीर पर प्रदूषित हवा का बेहद खतरनाक असर होने से लोगों की त्वचा, नाक, आख, गला, लीवर, फेफड़े, दिल, किडनी खतरे में है।

इससे हो रहे प्रभावित

1. धूल कण : वाहन के धूआं में

2. नाइट्रोजन ऑक्साइड : डीजल वाहन, गैस कुकर से

3. सल्फर डायऑक्साइड : विभिन्न प्रकार के पेट्रोलियम इंधन से

4. ओजोन : प्रदूषण के तत्वों व सूर्य की रोशनी से उत्पन्न

यह होता है असर

फेफड़े में पहुंचने के बाद वायु प्रदूषण के महीन कण खून में पहुंच जाते हैं। इससे दिमाग में रक्त की आपूर्ति कम हो सकती है। यह अल्जाइमर्स के खतरे को बढ़ा देता है। अध्ययनों में सामने आया है कि लंबे समय तक पीएम 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड से संपर्क का डिमेंशिया या बुजुगरें में समझने की क्षमता में निरंतर गिरावट से संबंध पाया गया है।

आखों पर प्रभाव

प्रदूषण के संपर्क में रहने से आखों में सूखापन, एलर्जी, दर्द के साथ यह आसू को एसिडिक बना देता है। इससे आखों को नुकसान पहुंचता है और रोशनी पर भी असर पड़ता है। आखों को साफ पानी से धोएं।

जोड़ों का बढ़ाता है दर्द

प्रदूषण से जोड़ों का दर्द बढ़ जाता है। सास लेने के दौरान पीएम 2.5 कण सास की नली में पहुंच जाते हैं। इससे नली में सूजन आने लगती है। इसकी वजह से शरीर में एन्जाइमेटिक रिएक्शन होता है।

दिल के दौरे का खतरा

प्रदूषण से दिल के दौरे का खतरा भी बढ़ जाता है। यह दिल की धमनियों में बाधा के लिए जिम्मेदार है। मास्क लगाकर ही घर से बाहर निकलना चाहिए। कोशिश करें कि प्रदूषण स्तर ज्यादा होने पर घर से बाहर न निकलें और दिल की धड़कन तेज करने वाली गतिविधियों में हिस्सा न लें।

त्वचा और बालों को नुकसान

प्रदूषण से बाल भी गिरने लगते हैं और इनकी चमक खोने लगती है। वहीं, त्वचा पर दाग-धब्बे हो जाते हैं और वह रूखी व बेजान लगती है। प्रदूषण से चेहरे की चमक खोने लग जाती है। एग्जिमा, त्वचा की एलर्जी, उम्र से पहले झुर्रियों के साथ त्वचा के कैंसर तक की आशका बढ़ जाती है।

फेफड़े और गले पर असर

प्रदूषण से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारिया होती हैं। इससे सास लेने वाली नली में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। प्रदूषण का सबसे बुरा असर अस्थमा के मरीजों पर होता है। बिना इन्हेलर के वह घर से बाहर न जाएं। बाहर के साथ अंदर के प्रदूषण से भी बचकर रहें।

वायु प्रदूषण से बचाव के उपाय

-वायु प्रदूषण का स्तर ज्यादा होने पर घर के बाहर और ट्रैफिक वाले इलाके के पास व्यायाम न करें।

-घर से बाहर निकलते वक्त मास्क, तौलिया या कोई साफ कपड़े से मुंह को ढंकें।

-घर से बाहर या शहर के किसी इलाके में जाने से पहले शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स चेक करें। इसके लिए आप अपने मोबाइल व इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकते हैं।

-घर में कुछ भी ऐसी चीजें न बनाएं जिससे कि ज्यादा धुंआ निकले। कम ईंधन इस्तेमल होने वाला खाना पकाएं।

-अपने आवास के आसपास किसी प्रकार का कचरा लकड़ी आदि न जलाएं या जलाने दें।

-घर या दुकान के आसपास पानी का छिड़काव करें।

-ज्यादा फल व हरी सब्जिया खाएं। साथ ही प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों का इस्तेमाल करने की बजाए पैदल चलें या साइकिल का इस्तेमाल करें।

-डॉ. आलोक कुमार सिंह, श्वांस रोग विशेषज्ञ।