मंगलू

अलका रोज इस स्टेशन से उतरकर ऑफिस के लिए रिक्शा लिया करती थी। वह एक बहुत सुलझी हुई और दयालु लड़की थी। पहली बार जब मंगलू उसे मिला था तो ऑफिस तक मंगलू ने उचित किराया लिया था जो अलका को बहुत पसंद आया वरना अक्सर रिक्शा वाले पहले ज्यादा किराया बताते थे...

मंगलू

फीचर्स डेस्क। दूसरे दिन भी बारिश के कारण मंगलू को कोई सवारी नहीं मिली थी। कहीं दूर अंधेरे में एक होटल की बत्ती जलती हुई दिखाई दे रही थी। मंगलू भीगता हुआ रिक्शा लेकर वहां पहुंच गया। शायद अंदर कोई पार्टी चल रही थी। मंगलू को आस थी कि पार्टी खत्म होने पर उसे कोई सवारी मिल जाएगी। क्योंकि पहले भी वह इस होटल के सामने आता था और उसको कई बार सवारी मिल जाती थी। उसने रिक्शा दरवाजे के पास लगा दी और दीवार के सहारे बरसाती ओढ़कर बैठ गया। उसके कपड़े भीगे हुए थे। बरसाती जगह-जगह से फटी हुई थी। वह इससे अपने को भीगने से बचाने की नाकाम कोशिश कर रहा था। बारिश बढ़ती जा रही थी और वह यह सोच रहा था कि इस बारिश में एक भी सवारी मिल जाए तो वह इतने पैसे दे देगी कि रिक्शा मालिक का किराया निकल जाएगा। जब बहुत देर तक कोई बाहर नहीं आया तो उसने होटल के बाहर बरामदे की छत के नीचे खड़े चौकीदार से आवाज देकर पूछा "ओ भरतवा कतनी देर बा पालटी छूटे मा?" चौकीदार भरत उसके ही गांव का था जब भी होटल में पार्टी  होती तो वह मंगलू को संदेशा दे देता। "पता नहीं भैया का बताई... कतनी  देर लागि। कौनों ठीक नाहीं....इहां तो पार्टी कई बार रात रात भर चलत बा।" मंगलूं फिर जाकर दीवार के पास बैठ गया। ठंड बढ़ती जा रही थी और रिक्शा वापस करने का टाईम भी हो चला था। आज तो मंगलू को लग रहा था अपने पैसों में से ही मालिक के पैसे देने पडे़ंगे।

मंगलू दीवार के सहारे से उठा। उसने अपनी बरसाती ठीक की और रिक्शा लेकर लौटाने चल दिया। कुछ समय बाद वह रिक्शा मालिक के घर के सामने खड़ा था। गेट के सामने पानी भरा था। मंगलू ने रिक्शा साइड पर बनी चैन के साथ बांध दी। फिर उसने कुर्ते की जेब से एक पॉलिथीन निकाला जिसमें कुछ  नोट रखे थे। कुर्ते के भीगने की वजह से पॉलिथीन में रखे पैसे भी सीले से हो गए थे। इन नोटों को वह ऐसे देख रहा था जैसे विदा होती बेटी को कोई पिता देखता है। यही उसकी जमा पूंजी थी जिसमें से आज उसको मालिक का किराया भी देना था क्योंकि सुबह से उसकी तो बोहनी तक भी नहीं हुई थी। जैसे ही मंगलू ने पॉलिथीन खोला तो पैसों के साथ रखा उसका छोटा सा नोकिया ग्यारह सौ का फोन पानी में जा गिरा। इस फोन से वह कभी-कभी गांव बात कर लिया करता था। "बाह रे परमात्मा तुमहऊ कंगाली में आटा गीला करत हो,  फोनवा भिगा दई। अब का जानी ईह ठीक होई का न। मंगलू ने धड़कते दिल से फोन को पानी से निकाला लेकिन कभी-कभी ईश्वर को भी तरस आ जाता है। मंगलू ने देखा फोन बिल्कुल सही था। यह देख उसके चेहरे पर चमक आ गई।

दरवाजा खटखटाने पर रिक्शा मालिक मुसद्दी घर से छाता लेकर बाहर निकल आया। मंगलू ने उसको आज का किराया पकड़ा दिया लेकिन उसने यह नहीं बताया कि आज सुबह से कोई सवारी उसकी रिक्शा में नहीं बैठी थी। वह पैदल ही चलता हुआ बस अड्डे तक आ गया जहां पुल के नीचे उसके कुछ बर्तन रखे थे। यही मंगलू की रात का ठिकाना था। सर्दी बहुत ज्यादा थी। मंगलू ने चूल्हा जलाया और आग तापने लगा। वह रोज अपना रसोई का सामान यहीं छोड़ देता था और रिक्शा चलाने के पश्चात रात को वापस लौट आता था। गरीब इंसान के पास दो बर्तनों के अलावा और होता ही क्या है दुनिया कम से कम इतनी इंसानियत तो रखती है वह गरीब के बर्तन नहीं चुराती। मंगलू ने सामान के ऊपर रखा कपड़ा हटाया एक थैले में से आटा निकाला और सिक्के की परात में गूंधने लगा। चूल्हे में अलाव धीरे-धीरे जल रहा थी। हवा के ठंडे झोंकों से आग जलने में थोड़ी परेशानी हो रही थी। मंगलू ने दो कच्ची सी बड़ी बड़ी रोटी बनाई और प्याज के साथ खाने लगा।

वह अपने ऊपर ज्यादा पैसे खर्च ना करता था क्योंकि गांव में उसका एक परिवार था जिसमें उसकी पत्नी उसकी बेटी एक बेटा और उसकी बहू शामिल थे। बेटा रामप्रवेश वही गांव के एक खेत में मजदूरी करता था। इन दोनों के पैसों से ही परिवार का गुजारा होता था जबसे रामप्रवेश की शादी हुई थी तो उसकी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई थी क्योंकि पत्नी लक्ष्मी गर्भ से थी। मंगलू की बेटी का अभी गौना नहीं हुआ था। उसकी विदाई के लिए भी मंगलू को पैसों की सख्त जरूरत थी। रोटी प्याज खाकर मंगलू वही पुल के नीचे एक चटाई बिछाकर लेट गया। सर्दी से बचने के लिए उसके पास मात्र एक कंबल था जो किसी दानी सज्जन ने उसको दिया था। सुबह के खाने की चिंता नहीं थी। पास वाले मंदिर में सेठ लोग कभी ब्रेड या कभी कुछ और बांट जाते थे। वही मंगलू और उस जैसे कई लोगों का रेस्टोरेंट था। सर्दी बढ़ती जा रही थी। कुछ समय बाद मंगलू ठिठुरने लगा तो उसकी नींद खुल गई। अब वह क्या करे। उसने सामने बैठे कुत्ते मोती को पुचकारकर अपने पास बुला लिया। मोती दुम हिलाता हुआ मंगलू के पास आकर लेट गया। उसके पास लेटने से मंगलू को सर्दी से थोड़ी राहत महसूस हुई। सुबह होते ही मंगलू ने मोती को दुत्कारकर भगा दिया। मोती ऐसे देख रहा था जैसे सोच रहा हो इंसान तू हमेशा मतलबी ही रहेगा। मेरे साथ सोकर भी तुझे वफा करनी ना आई। पूरी रात मेरी गर्मी का आनंद लेता रहा और सुबह तुझे अपने और मेरे भीतर का अंतर नजर आने लगा।

 मंगलू ने अपने चटाई समेटी और कंबल अपने सामान पर डालकर रिक्शा लेने निकल गया। आज मौसम थोड़ा ठीक लगा। रिक्शा मालिक से रिक्शा लेकर वह तुरंत मंदिर के आगे आ गया। उसको लगा कहीं सेठ लोग खाना बांटकर लौट ना जाएं। मंदिर के बाहर लगे नल से उसने मुंह हाथ धोया और मांगने वालों की लाइन में बैठ गया जहां अन्य रिक्शा वाले भी आकर बैठ जाते थे। कुछ समय बाद एक मारुति वैन आकर रुकी। ड्राइवर ने वैन के पिछले हिस्से का दरवाजा खोला और उसमें से ब्रेड पकोडो़ं का बड़ा सा पतीला निकालकर नीचे रख दिया। फिर लाइन में खड़े एक समझदार से दिखने वाले युवक को बुलाकर उसने यह सब समान बांटने के लिए कह दिया। सभी लोग लाइन में बड़े अनुशासन से बैठकर अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे। युवक ने पहला ब्रेड पकौड़ा उठाकर अपने थैले में डाल लिया और फिर बारी-बारी सबको देने लगा। मंगलू को भी एक ब्रेड पकौड़ा मिल गया।उसने पकौड़ा अपनी रिक्शा की आगे की टोकरी में रख लिया। सुबह-सुबह  मेट्रो स्टेशन से उसे एक महिला सवारी मिल जाती थी। इसलिए वह जल्दी से स्टेशन की ओर निकल गया। 'दीदी जी की मैट्रो आ गई। वह इस मेट्रो से उतर रही होंगी। 'मंगलू ने सोचा क्योंकि कल बरसात के कारण उसे यह सवारी भी नहीं मिली थी। थोड़ी ही देर में सवारियां सीढ़ियों से उतरने लगी और मंगलू बेचैनी से उस महिला का इंतजार करने लगा। सामने सीढ़ियों से अलका को उतरते देख मंगलू की बांछें खिल गई।

अलका रोज इस स्टेशन से उतरकर ऑफिस के लिए रिक्शा लिया करती थी। वह एक बहुत सुलझी हुई और दयालु लड़की थी। पहली बार जब मंगलू उसे मिला था तो ऑफिस तक मंगलू ने उचित किराया लिया था जो अलका को बहुत पसंद आया वरना अक्सर रिक्शा वाले पहले ज्यादा किराया बताते थे और मना करने पर किराए के विषय में बारगेनिंग शुरू कर देते। अलका को पाँच या सात रुपये फालतू देने में कोई फर्क नहीं पड़ता था लेकिन उसको बारगेनिंग से सख्त नफरत थी। वह चाहती थी कि इंसान का काम छोटा हो या बड़ा इमानदारी जरूरी है।"कैसे हो मंगलू?" अलका ने पूछा।

   "ठीक हूं दीदी जी।" मंगलू ने हंसते हुए कहा।

  'पर कल बहुत बुरा हुआ। बारिश के कारण आप नहीं आए और फिर पूरा दिन हमारी बोहनी नहीं हुई। आपके कदम मेरी रिक्शा के लिए बहुत शुभ रहते हैं।" अलका उसकी बातें सुनकर मुस्कुराने लगी  लेकिन मंगलू अपनी ही धुन में कहता जा रहा था "कोई बात नहीं दीदी जी आज आप आ गई हो। आज मैं कल की भरपाई कर लूँगा।"

  "मंगलू अगर एक दिन सवारी नहीं मिलती तो तुम्हें क्या अंतर पड़ता है। क्या तुम्हारे पास एक दिन गुजारे के लिए भी पैसे नहीं होते।" अलका ने मंगलू से पूछा ।

     "दीदी जी पैसे तो होते हैं लेकिन रिक्शा मालिका के लिए रोज का 100 रुपये किराया मार जाता है। बिना कमाई के अपनी जमा पूंजी से यह सौ रुपये देना बहुत भारी पड़ता है और मान लो अगले दिन भी सो रुपए का काम नहीं हुआ तो क्या ही जमा पूंजी बाकी रह जाएगी?" मंगलू ने थोड़ा गंभीर होकर कहा। उसकी बात सुनकर अलका सोच में पड़ गई लेकिन उसका ऑफिस आ चुका था वह मंगलू से और कोई बात ना कर सकी। अलका ने उतरकर मंगलू को पैसे दिए और ऑफिस की ओर बढ़ गई। मंगलू ने पैसे पॉलिथीन में डाल लिए और रिक्शा वापस मोड़कर मेट्रो स्टेशन की ओर लौट गया। मेट्रो स्टेशन से ही रिक्शा वालों को  सवारियाँ मिलने  की सबसे ज्यादा आशा होती है ।

 अलका को मंगलू की बात बार-बार याद आती रही। उसने अक्सर सुना था कि रिक्शावाले दिन भर कमाकर रात को ठेके की दुकान पर पहुंच जाते हैं। जिसकी रोटी की भी गारंटी नहीं वह क्या शराब पीता होगा अलका ने सोचा और निश्चय किया कि कल मंगलू से वह इस विषय में और जानकारी हासिल करेगी। अगले दिन मंगलू से ज्यादा प्रतीक्षा अलका को थी। उसने रिक्शा पर बैठते ही मंगलू से पूछा "मंगलू एक  बात  बताओ रिक्शा मालिक के किराए के अलावा और तो कहीं नहीं देने होते?" 

"क्या बात करते हो दीदी जी। रिक्शा वाले का जीवन बहुत कठिन होता है। रिक्शा मालिक के अलावा और बहुत से लेनदार होते हैं सब पिछले जन्मों का खेला है।जरूर जिसने पिछले जन्म में किसी से पैसे लेकर ना लौटाए होंगे इस जन्म में रिक्शावाला बनकर पैदा होता है। कई बार सवारी के चक्कर में रिक्शा गलत जगह पर खड़ी हो जाती है तो ट्रैफिक पुलिसवाले जुर्माना कर देते है। सवारी को कई बार जल्दबाजी होती है और रिक्शावाला लाल बत्ती लांघ जाता है तो पकड़ा जाता है।"

"मंगलू लाल बत्ती क्रॉस करना तो गलत है ना?" अलका ने कहा।

"दीदी जी रिक्शा वाले को लाल बत्ती की जगह भी रोटी दिखाई देती है।" प्रत्यक्ष में मंगलू मुस्कुरा रहा था लेकिन अलका उसकी आवाज में छिपे दर्द को पहचान गई।

"दूसरी बात रिक्शा वाले गलत जगह पर रिक्शा क्यों खड़ी करते हैं?" अलका ने पूछा

 " दीदी जी इहमें रिक्शावाले का दोष नाहीं। सवारी रिक्शा अपनी सुविधा अनुसार पास से ही लेना चाहती हैं, रिक्शा स्टैंड तक चलना भी उसको मंजूर नहीं होता।" मंगलू की बात अलका को कहीं ना कहीं सही लग रही थी। अक्सर लोग एक कदम भी चलना पसंद नहीं करते। वे चाहते हैं कि रिक्शा उनको उनको बिलकुल पास से मिल जाए। इसलिए रिक्शावाले सवारी की सुविधा के अनुसार अपना ठिकाना बना लेते हैं।  "तो मंगलू रिक्शा वाले जो दिन भर कमाते हैं, मैंने सुना है रात को दारू में उड़ा देते हैं।" अलका को अब इस प्रश्न के उत्तर की जिज्ञासा थी

 " दीदी जी सभी रिक्शा वाले एक से नहीं होते। और क्या दारू सिर्फ रिक्शा वाले ही पीते हैं का, दूसरा सब लोग नहीं पीटा का? मंगलू के इस प्रश्न का अलका के पास कोई जवाब नहीं था। "हां कई बार जादा थकान के कारण ऐसा होता है और कई बार कुछ लोग आदि भी होते हैं। लेकिन कई बार ड्रग माफिया सबका बहुत बड़ा हाथ होता है जो इन्हें नशे का शिकार बना देते हैं। हालात और गरीबी का मारा हुआ रिक्शावाला कुछ देर के सुकून के लिए अपनी पूरी जिंदगी बर्बाद कर बैठता है। कई बार रिक्शा वाले की मौत और कुत्ते की मौत में ज्यादा अंतर नहीं रहता। दोनों ही सड़क पर चलते चलते मर जाते हैं। जब शरीर कमजोर हो जाता है और रिक्शा खींचने की हिम्मत नहीं रहती तो भी पापी पेट के लिए वह रिक्शा खींचता रहता है। जिससे एक दिन उसकी सांसें रुक जाती है। "मंगलू की ऐसी पीड़ादायक बातें सुनकर अलका का मन भर आया।

शाम के समय अलका जब अपनी मां के साथ चाय पी रही थी तो उसने इस विषय में उनसे बात की। अलका की मां एक सुलझी हुई महिला थी। उन्होंने बताया कि उनके पिता कभी भी रिक्शा वाले से पैसे के लिए बारगेनिंग नहीं करते थे। वे अक्सर कहते थे कि यह बेचारे अगर कुछ पैसे फालतू बोल भी देते हैं तो क्या हुआ। इनकी मेहनत, इनका पसीना सूखने से पहले दे देनी चाहिए। कितना दर्द होता है जब एक इंसान दूसरे इंसान का बोझ खींचता है। मां की बात सुनकर अलका की आंखों में आंसू आ गए। रात को खाने के बाद अलका के कान में मंगलू के शब्द गूंजते रहे और उसने निश्चय किया कि वह मंगलू को एक रिक्शा खरीद कर देगी ताकि उसे मालिक का किराया ना चुकाना पड़े और आय में थोड़ी बढ़ोतरी हो जाए।

 अगले दिन सुबह जब मंगलू अलका से मिला तो अलका ने बोला "मंगलू मैं तुम्हें अगर खुद की रिक्शा ले दूं तो कैसा रहेगा।" अल्का की बात सुनकर मंगलू आवक रह गया। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। "दीदी जी अगर ऐसा हो गया तो हमारे बहुत पैसे बच जाएंगे।" मंगलू ने कहा।   "लेकिन मंगलू मेरी एक शर्त है कि बचे पैसों से तुम शराब नहीं पियोगे बल्कि आय का कुछ हिस्सा तुम जोड़कर एक साल बाद किसी अन्य जरूरतमंद को रिक्शा दोगे।"

    " ठीक है दीदी जी।" मंगलू को अलका की शर्तें मंजूर थी। कुछ दिन बाद अलका ने एक रिक्शा लेकर मंगलू को दे दिया । आज मंगलू की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, उसे लगा कि वह एक बंधन से मुक्त हो गया है।  रिक्शा मालिक के किराए की चिंता खत्म। अब उसको बीमारी या मजबूरी में रिक्शा नहीं चलानी पड़ेगी। चमचमाता हुआ रिक्शा मंगलू को बहुत भा रहा थी। उस दिन रात को वह रिक्शा की सीट पर ही सोया। उसे वह किसी डनलप के गद्दे से कम नहीं लग रही थी। अगले दिन सुबह मंगलू खुशी-खुशी रिक्शा लेकर निकला और सीधा मंदिर के पास पहुंच गया। उसने ईश्वर के आगे हाथ जोड़कर धन्यवाद किया। लेकिन रिक्शा नो पार्किंग जोन में खड़े करने के कारण ट्रैफिक पुलिस की गाड़ी उठाकर ले गई। मंगलू ने किसी तरह जुर्माना भरकर अपना रिक्शा छुड़वा लिया। इंसान का भाग्य ही अगर खराब हो तो मुसीबतों से उसका दामन कभी नहीं छूट पाता। एक बार एक मनचले गाड़ी वाले की टक्कर से मंगलू की रिक्शा का पहिया क्षतिग्रस्त हो गया जिसकी मरम्मत में मंगलू के काफी पैसे लग गए लेकिन फिर भी अलका को दिए वचन के लिए कुछ पैसे अलग से जमा अवश्य करता था।

एक दिन एक ऐसी घटना हुई जिसने मंगलू का जीवन ही बदल डाला। चौराहे पर अक्सर रेडलाइट होने के कारण बस से कुछ यात्री वहां उतरते थे। सवारियाँ हथियाने के चक्कर में रिक्शा वालों की होड़ सी वहां लग जाती जिससे लोगों को काफी असुविधा होती थी। इस पर कई बार ट्रैफिक पुलिस को सख्ती बरतनी पड़ती थी एक दिन एक ट्रैफिक हवालदार ने गुस्से में आकर वहां से रिक्शा वालों को खदेड़ना शुरू कर दिया। मंगलू का ध्यान बस से उतरती हुई सवारियों पर था। जब वह नहीं हटा तो हवालदार ने सूए से मंगलू का टायर फाड़ दिया और डंडे से रिक्शा का शीशा भी तोड़ दिया। यह देखकर मंगलू बहुत उत्तेजित हो गया और उसने आव देखा ना ताव पास पड़ा बड़ा सा पत्थर उठाकर ट्रैफिक हवलदार के सिर पर दे मारा। हवालदार वहीं सड़क पर ही ढेर हो गया। इतने में बाकी पुलिस वाले भी वहां आ पहुंचे और मंगलू की पहले तो जमकर पिटाई की और बाद में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। कोर्ट की ओर से मंगलू को चौदह बरस की सजा सुनाई गई। जब वह सज़ा सुनकर कोर्ट से बाहर निकला किसी दुख और परेशानी की जगह मंगलू के चेहरे पर संतोष के भाव थे। वह सोच रहा था चलो जेल में अब रोटी, सर्दी, जुर्माना, रेड लाइट यह सब चिंताएं अब नहीं होंगी और वह आराम से रोटी खा पाएगा।